
स्वर्गीय सेठ ताराचंद जी
नगर के सेठ स्वर्गीय ताराचंद जी ,जो कि अपनी बेटी श्रीमती सरोज रानी जी पत्नी श्रीमान सतीश कुमार जी के पास रहते थे , उनके पास विद्यालय की प्रबंधक समिति के कुछ सदस्य विद्यालय में एक कक्ष बनवाने के लिए दान राशि लेने गए तो मास्टर सतीश कुमार जी ने प्रबंध समिति से बात की,कि अगर विद्यालय का नाम उनके ससुर सेठ ताराचंद जी के नाम पर रखा जाए तो वह विद्यालय भवन के लिए अच्छी मात्रा में धनराशि विद्यालय को दान में देना चाहते हैं और साथ ही सेठ ताराचंद जी की बेटी श्रीमती सरोज रानी जी ने पिता जी को कहा कि उन्हें पिता जी की जमीन नहीं चाहिए वह इस जमीन को बेचकर पैसे विद्यालय को दान में दे दें, जिससे उनका नाम उनके जाने के बाद भी चलता रहे| इस प्रकार बेटी और दामाद की बात मानकर सेठ ताराचंद जी ने अपनी जमीन बेच कर सारी धनराशि विद्यालय के निर्माण के लिए दे दी| प्रांतीय प्रबंधक समिति से बात कर स्थानीय प्रबंध समिति ने विद्यालय का नाम सेठ श्री ताराचंद जी के नाम पर रखने की बात मान ली और इस विद्यालय का नाम उनके नाम से अर्थात श्री ताराचंद सर्वहितकारी विद्या मंदिर रखा गया और साथ ही उनके दामाद मास्टर सतीश कुमार जी को ताउम्र विद्यालय की प्रबंध समिति का स्थाई सदस्य बनाया गया।
नए भवन में प्रवेश

धर्मशाला से शुरू होकर आलीशान भवन तक की यात्रा
1989 में भीखी के बल्लडपत्ती के कुछ लोगों की सांझी जगह जो कि जत्थेदार सरदार सेवा सिंह जी तथा जत्थेदार सरदार महेंद्र सिंह जी के प्रयासों से प्राप्त हुई। उस समय से शुरू होकर इस विद्यालय ने उन बुलंदियों को छुआ है जहां पर खड़े होकर हम अपनी प्रगति व सफलता के सफर पर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं। एक छोटे से पौधे के रूप में शुरू होकर आज यह विद्यालय एक विशाल पेड़ का रूप धारण कर चुका है जिसने समाज को अपने बहुमूल्य फलों के रूप में अनेक अच्छे व्यक्तित्व प्रदान किए हैं जो कि डॉक्टर, वकील , अध्यापक ,पुलिस ऑफिसर आदि बनकर समाज की सेवा कर रहे हैं । अपने मेहनती प्रधानाचार्यों, अध्यापकों व अत्यंत सहयोगी प्रबंधक समिति के सदस्यों तथा इलाके के अन्य गणमान्य व्यक्तियों के सहयोग के कारण इस विद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में ना सिर्फ अपना नाम चमकाया है बल्कि साथ ही सीबीएसई पद्धति पर आधारित एक नया विद्यालय भी शुरू किया है जो आज अपनी अच्छी पहचान बना चुका है।